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कोई मंज़िल नयी हरदम है नज़र के आगे / गुलाब खंडेलवाल
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19:03, 8 जुलाई 2011
यों तो चक्कर था सदा पाँव में दीवाने के
नींद क्या
खूब
ख़ूब
है आयी तेरे दर के आगे
जोर चलता नहीं किस्मत की हवाओं पे, गुलाब!
जैसे चलती नहीं तिनके की लहर के आगे
<poem>
Vibhajhalani
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