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यों तो बदली हुई राहों की भी मजबूरी थी / गुलाब खंडेलवाल
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19:43, 8 जुलाई 2011
क्या न इन शोख़ गुनाहों की भी मजबूरी थी?
यों तो इस बाग़ में हँसने
केलिए
के लिए
आये गुलाब
दिल से उठती हुई आहों की भी मजबूरी थी
<poem>
Vibhajhalani
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