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यों तो इस दिल के क़दरदान बहुत कम हैं आज / गुलाब खंडेलवाल
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19:46, 8 जुलाई 2011
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज
दो घड़ी मुँह से लगाकर
किसी ने
किसीने
फ़ेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज
और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके
होंठों
होँठों
पे छिड़े और ही सरगम हैं आज
<poem>
Vibhajhalani
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