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यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
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20:14, 9 जुलाई 2011
प्यार की मंज़िल तो है इस बेख़ुदी से दो क़दम
सैकड़ों कोसों का जिसको
फासला
फ़ासिला
समझे हैं हम
आँखों-आँखों में इशारा
कर के
करके
आँखें मूँद लीं
रुक के
रुकके
दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम!
देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब!
Vibhajhalani
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