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लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है / गुलाब खंडेलवाल
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20:19, 9 जुलाई 2011
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है!
जब कहा उनसे, 'खिले आज तो
होठों
होँठों
पे गुलाब'
हँस के बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!
<poem>
Vibhajhalani
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