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जीने का कोई हासिल न मिला आख़िर यह उम्र तमाम हुई / गुलाब खंडेलवाल
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20:33, 9 जुलाई 2011
अब राम ही जाने कब इसकी, पत्ती-पत्ती नीलाम हुई!
था फ़ासिला चार ही अंगुल का, हाथों से
किसी के
किसीके
आँचल का
वे सामने पर आये न कभी, सजने में ही रात तमाम हुई
Vibhajhalani
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