Changes

गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात!
धधक के धधकके बुझ भी गए हों, हम उनसे अच्छे हैं
जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात
कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत
हम अपने ख़ून से रंगते रहे हैं सारी रात
 
<poem>
2,913
edits