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मार्ग अनदेखा, लक्ष्य अजाना / गुलाब खंडेलवाल
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21:09, 16 जुलाई 2011
चक्कर में है बुद्धि, चेतना थककर बैठ गयी है
चिर-पुराण होकर भी मेरी यात्रा नित्य नयी है
चालाक
चालक
को तो क्या, मैंने निज को न अभी पहचाना
मार्ग अनदेखा, लक्ष्य अजाना
जीवन क्या है, चलते जाने का बस एक बहाना
<poem>
Vibhajhalani
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