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साक्षी, / गुलाब खंडेलवाल
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21:17, 16 जुलाई 2011
भोगे नहीं, देखे हुए क्षण के?
साथ रह कर भी प्राण के
दुःख
दुख
को दूसरे
किसी ने
किसीने
नहीं झेला है,
मन की इस पीड़ा का साक्षी तो
एक मेरा मन ही अकेला है.
Vibhajhalani
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