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गलने लगा हिमालय लज्जा से सागर चिंघाड़ रहा / गुलाब खंडेलवाल
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21:25, 16 जुलाई 2011
उसका यह विश्वासघात का विष से अधिक भयंकर पाप
आह!
तुम्हीं को
तुम्हींको
अंतिम आहुति बनना था इस ज्वाला में
जो खा गयी सहस्रों शिशुओं, कन्याओं, माताओं को,
पुत्र-पुत्रवधुओं को, तरुणों को, तरुणी या बाला में
Vibhajhalani
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