Changes

नया पृष्ठ: <poem> शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-…
<poem>
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-कस्ता से ख़ूँ है

शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
जो आमद-ए-सरसर की तमन्ना में निगूँ है

शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह की मानिंद निगूँ है ।
</poem>
160
edits