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17:03, 19 जुलाई 2011 <poem>
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-कस्ता से ख़ूँ है
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
जो आमद-ए-सरसर की तमन्ना में निगूँ है
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह की मानिंद निगूँ है ।
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