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'मन के तार तुझी से बाँधे / गुलाब खंडेलवाल
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19:15, 19 जुलाई 2011
'फिर-फिर वृन्दावन में आ के
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये
हमारे
हमारी
प्रेम-कथा के
पृष्ठ रहे जो सादे'
Vibhajhalani
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