चली राम के सँग-सँग सीता
धनुष-भंग से हर्षित जन-मन
देवों का दुःख दुख बीता
धूम अभिषेक की,
वन को चले राम रघुनाथ
भेज दी चुनौती लंकापति को
दुरमति दुर्मति शूर्पणखा के हाथ
सीता के हरण की,
वेदना जटायु के मरण की
कौन जाने पवनसुत बिना,
पीड़ा राम पीड़ा राम के मन की!
हाँक हनुमान की,