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मन का ताप हरो / गुलाब खंडेलवाल
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20:48, 19 जुलाई 2011
श्रद्धा-ज्योति भरो
ज्यों तुलसी का मानस
पढ़ कर
पढ़कर
तुमने लिखा 'सत्य, शिव, सुन्दर'
वैसे ही
मेरे
मेरी
रचना पर
अपनी मुहर धरो
Vibhajhalani
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