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धरती में गड़ा बीज चिल्लाया-- / गुलाब खंडेलवाल
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20:59, 21 जुलाई 2011
<poem>
धरती
धरती
में गड़ा बीज चिल्लाया--
'मुझे अँधेरे से प्रकाश में आने दो,
खुली हवा के झोंके खाने दो,
मुझे चाहिये फूल की-सी कोमल काया.'
डाल पर खिला फूल
बुद्-बुदाया
बुदबुदाया
--
'अस्तित्व पीड़ा है, दंशन है,
इसकी आकांक्षा पागलपन है,
Vibhajhalani
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