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मेरी वीणा, तान तुम्हारी / गुलाब खंडेलवाल
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21:55, 21 जुलाई 2011
मधुर स्पर्श से फूट रही हैं ध्वनियाँ प्यारी-प्यारी
साज
साज़
भले ही जड़ है सारा
तारों पर तो हाथ तुम्हारा
जब भी कभी जोर से मारा
चाहे ठाठ बिखर भी जाये
राग कभी मिटता न
मिटाए
मिटाये
फिर-फिर नव तंत्री ले आये
हे वादक! बलिहारी
Vibhajhalani
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