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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>

कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत

वन में ज्यों लगी आग
डर-डर कर रहे भाग
विहगों के दल विकल, सभीत

काल जिसे लिखता है
पृष्ठ शून्य दिखता है
जीवन सपने-सा रहा बीत

क्षीण तड़ित-रेखा है
शेष कुल अदेखा है
आगे नीलाभ, मौन, शीत

कौन अब सुनेगा ये गीत!
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत
<poem>
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