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यमुना-तट, वंशीवट, गायें!
दधि-घट लिए गोपबालायें
क्या फिर पडीं दिखाई!
 
ध्यान महाभारत का आया!
गीता को मन में दुहराया!
क्या अभिमन्यु, कर्ण की छाया
फिर नयनों में छायी!
 
बढ़े सखा-हित रथ निकालकर!
माँ लायी नवनीत थाल भर!
पा राधा का परस भाल पर
समरसता टिक पायी!
याद किस-किसकी उस क्षण आयी!
धरे व्याध का रूप काल ने जब पग छुये, कन्हाई!
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