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मुद्दत हुई है आपसे आँखें मिले हुए / गुलाब खंडेलवाल
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20:52, 22 जुलाई 2011
क्यों दौड़ती रही हैं निगाहें उसी तरफ़
दिल के नहीं जो तार भी कुछ
है
हों
मिले हुए!
कहने को यों तो और भी कह देते कुछ गुलाब!
Vibhajhalani
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