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ग्यारह दोहे / जगदीश व्योम
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13:26, 10 अगस्त 2011
तब-तब होती सभ्यता, दूनी लहू-लुहान।।
बौने कद के लोग हैं, पर्वत
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से अभिमान।
जुगनू अब कहने लगे, खुद को भी दिनमान।।
शकरकंद के खेत के, बकरे पहरेदार।।
बदला
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बदला लग रहा, मंचों का व्यवहार।
जब से कवि करने लगे, कविता का व्यापार।।
वीरबाला
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