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19:30, 11 अगस्त 2011 मेरी जड़-अनगढ़ वीणा को
हे स्वरदेवी, अपना स्वर दो!
अंदर-बाहर घना अँधेरा
दूर-दूर तक नहीं सबेरा
दिशाहीन है मेरा जीवन
ममतामयी, उजाला भर दो!
मानवता की पढूँ ऋचाएं
तभी रचूं नूतन कविताएँ
एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ
करुणाकर ऐसी मति कर दो!
जानें अपने को पहचानें
'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' मानें
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन
हंसवाहिनी ऐसा वर दो!