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<Poem>
मन का तोता बोला करता
रोज़ रोज नये संवाद
महल-मलीदा-पदवी चाहे
लाखों-लाख पगार
काम एक ना वैसा करता
सपने आँख हज़ारहजार
इच्छाओं की सूची भरतालाकर देता सिर पर देता लाद
अपने आम बाग के मीठे
कुतर-कुतर कर फैंके
किन्तु पड़ोसी का खट्टा खट्‌टा भी
उसको ज्यादा महके
अड़ा-खड़ा प्रतिवाद
कि विज्ञापन की भाषा बोले‘यह 'यह दिल माँगे मोर’मोर'देख-देख बौराए बौराये तोता
देता खींस निपोर
बात न मानो, करने लगता
घर में रोज़ फ़सादरोज फसाद
</poem>
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