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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
एक से एक बढ़कर चले
सब लुटे राह में क़ाफ़ले
प्यार ऐसे ही होता कभी
जैसे दीपक से दीपक जले
एक दिल भी धड़कता रहा
चाँदनी के हिँडोलों तले
कोई आँखें मिलाता नहीं
आ गए हम कहाँ दिन ढले!
तुम अभी तो खिले थे, गुलाब!
रंग दम भर में क्यों उड़ चले!
<poem>