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सत्ता पर काबिज होने को
जुगत भिड़ाते दल
करें सियासी सौदेबाजी
जनता में हलचल

हवा चुनावी गाँव-शहर में
डोले-बतियाये
खलनायक भी नायक बनकर
मंचों पर छाये

बड़े-बड़े मिल वादे करते
भरके गंगाजल

इन सीधी-सादी नष्लों को
खांचों में बाँटा
फूल रखे अपनी झोली में
औरों को कांटा

वोट-नोट की राजनीति में
शुचिता गयी निकल!

वही चुनावी मुद्दे लेकर
ये घर-घर आये
सकारात्मक बदलावों के
सपने दिखलाये

दल-दल के अपने प्रपंच हैं
अपने-अपने छल
</poem>
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