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1
मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम दो ,
इसी शहर में एक पुरानी सी इमारत और है ।
2
हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते,
अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते ।
3
दिल ऎसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के
4
चमक यूँ ही नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर
5
मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
6
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
7
एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया,
वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला ।