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वो लब कि जैसे साग़रो-सहबा दिखाई दे / कृष्ण बिहारी 'नूर'
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15:12, 12 अगस्त 2011
वो भीड़ में भी जाये तो तनहा दिखाई दे
फिरता हूँ शहरों-शहरों समेटे
हए
हर
एक याद
अपना दिखाई दे न पराया दिखाई दे
Krishna Kumar Naaz
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