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उस पार / गोपाल सिंह नेपाली

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तप रही धरा यह प्यासी भी होगी
फिर चारों ओर उदासी भी होगी
प्यासे जग ने माँगा होगा पनीपानी
करता होगा सावन आनाकानी
उस ओर कहीं छाए होंगे बादल
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