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01:13, 13 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश पोपली
|संग्रह=
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[[Category:कविता]]
{{KKCatKavita}}<poem>कल रात शहर में बेतहाशा बरसात हो रही थी
तुम्हा रे साथ भीगने की कल बात हो रही थी
बागों में फूल खिले हैं, पेड़ों पर पड़े झूले हैं
सावन के मौसम की कल बात हो रही थी
तारों भरा आकाश है, बहारों भरा चमन है
जन्नंत के नजारों की कल बात हो रही थी
चारों तरफ नफरत है, अजीब सी गफ़लत है
दुनिया के सितमगारों की कल बात हो रही थी
खुशियां काफ़ूर सी हैं, धड़कनें नासूर सी हैं
बस्तीा के सन्नाकटों की कल बात हो रही थी
जहां सारा खफ़ा है, हर कोई बेवफ़ा है
मुहब्बात के वफ़ादारों की कल बात हो रही थी
कदम आगे उठते हैं, हर मोड़ पर रुकते हैं
सफ़र के राहगीरों की कल बात हो रही थी
</poem>