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कल रात शहर में / मुकेश पोपली
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01:14, 13 अगस्त 2011
खुशियां काफ़ूर सी हैं, धड़कनें नासूर सी हैं
बस्तीा
बस्ती
के सन्नाकटों की कल बात हो रही थी
जहां सारा खफ़ा है, हर कोई बेवफ़ा है
Neeraj Daiya
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