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प्रेम / कीर्ति चौधरी

46 bytes added, 09:29, 13 अगस्त 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
तुमने हाथ पकड़कर कहा
 
तुम्हीं हो मेरे मित्र
 
तुम्हारे बग़ैर अधूरा हूँ मैं
 
क्या वह तुम्हारा प्रेम था ?
 
मैंने हाथ छुड़ाकर
 
मुँह फेर लिया
 
मेरी आँखों में आँसू थे
 यह भी तो प्रेम था।था ।</poem>
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