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अपराध की इबारत / जगदीश गुप्त
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10:00, 13 अगस्त 2011
क़ैदी की तरह
कितना भी छटपटाएँ
अपनेको
अपने को
उसके घर से
:मुक्त कर पाते नहीं।
डा० जगदीश व्योम
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