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इक जरा छींक ही दो तुम / गुलज़ार
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शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे
लुढकाते
लुढ़काते
हैं गिलसियाँ भर के
अनिल जनविजय
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