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02:36, 28 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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[[Category:बांगला]]
<poem>
हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत
हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो
घर की दीवारें बने न कोई कारा
हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का
हो लगन ठीक से ही सब कुछ करने की
हों नहीं रूढ़ियाँ रचती कोई मरुथल
पाये न सूखने इस विवेक की धारा
हो सदा विचारों ,कर्मों की गतो फलती
बातें हों सारी सोची और विचारी
हे पिता मुक्त वह स्वर्ग रचाओ हममें
बस उसी स्वर्ग में जागे देश हमारा.
'''प्रयाग शुक्ल द्वारा बाँग्ला से अनूदित गीतांजलि में से '''
</poem>