कवि दुरसै बांकीदास करन, सूरजमल मोती पोया है ।
इणमें ही पीथल रचि वेलि, रचियोड़ा केइक रासा है ।
डिंगळ गीतां री डकरेलण, आ राजस्थानी भासा है ।।४॥</poem>
इणमें ही हेड़ाऊ जलाल, नांगोदर लाखौ गाईजै ।
इणमें ही हिचकी आवै है, इणमें ही आंख फ़रूकै है ।
इणमें ही जीवण-मरण जोय, अन्तस रा आसा-वासा है ।
मोत्यां सूं मूंगी घणमीठी, आ राजस्थानी भासा है ॥६॥</poem>