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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
पटरी से उतरी है जीवन की रेल
ख़त्म हुआ खेल, समझ ख़त्म हुआ खेल
कैसा सींचा तुमने अपना ये बाग़
सूखे सब पौधे, मुरझाई हर बेल
पटरी से उतरी है ...........................</poem>