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मैंने हवा को महसूस किया -<br />
शून्य को सम्पन्न बनाते हुए,<br />
सरहदों के फासले मिटाते हुए,<br />
खुशबु को पंख लगाते हुए,<br />
आवाज की दुनिया सजाते हुए,<br />
बिना कहीं भी ठहरे,<br />
यायावर जीवन बिताते हुए,<br />
<br />
और फिर मुझे<br />
खुद पर तरस आया.<br />
<br />
मैं -<br />
यानि कि एक आदम जात,<br />
<br />
जो -<br />
<br />
संपन्नता को शुन्य की ओर<br />
ले जा रहा है,<br />
<br />
सरहदों को छोड़ो,<br />
दिलों में भी<br />
फासले बढाता जा रहा है,<br />
<br />
खुशबु की जगह,<br />
जहरीली गैसों का<br />
अम्बार लगाता जा रहा है,<br />
<br />
हर वो आवाज,<br />
जो दमदार नहीं है,<br />
उसे और दबाता जा रहा है,<br />
<br />
मैं -<br />
जिसे कि पहचाना जाता था,<br />
मानवीय मूल्यों के शोधकर्ता के रूप में,<br />
ठहर चूका हूँ -<br />
इर्ष्या और द्वेष की चट्टान पर.<br />
<br />
<br />
और जब ये सब -<br />
देखा,<br />
सोचा,<br />
समझा,<br />
<br />
सचमुच,<br />
मुझे -<br />
खुद पर तरस आया.<br />
<br />