{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatGeet}}<poem>हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम|<br />ना रूप तेरा, ना रंग तेरा, <br />ना जानू तेरा नाम||<br />हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...<br /><br />कठिन वक्त में आता है तू, सच्ची राह दिखाता है तू|<br />हम से जो हो पाए न सम्भव, चुटकी में कर जाता है तू|<br />अहंकार मिटता है जहाँ पे, वहीं है तेरा धाम||<br />हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...<br /><br />हार्डवेयर जो मढ़ा है तूने, उसकी कोई होड़ नहीं है|<br />सॉफ़्टवेयर जो गढ़ा है तूने, उसकी कोई तोड़ नहीं है|<br />कितने फीचर, कितने फँक्शन, करता सारे काम||<br />हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...<br /><br />सुना है धरती, अम्बर, पानी, अग्नि, हवा सब तुझसे हैं|<br />सुख-दुख, अच्छा-बुरा, गतागत, हानि-ऩफा सब तुझसे हैं|<br />सृष्टि के सारे करतब, तुझसे पाते अंजाम||<br />हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...<br /><br />ढाई आखर का तेरा मोबाइल नम्बर है जाहिर|<br />कइयों फोन अटेंड करे - इक साथ, कौन - तुझ सा माहिर|<br />तेरा ओफिस चले रात दिन, सुबह हो या फिर शाम||<br />हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...<br /><br />हार्डवेयर - मानव शरीर<br />सॉफ़्टवेयर - मानव मस्तिष्क<br />ढाई आखर = प्रेम<br /><poem>{{KKCatGeet}}</poem>