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पारिजात / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ / एकादश सर्ग / पृष्ठ - २
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भारत-वसुधा द्वारा वह।
चिरजीवी पद है पाता॥14॥
कर्तव्य-विमूढ कगी।
क्यों नहीं विचित्र अवस्था।
है भरी विषमताओं से।
भव कर्म-अकर्म-व्यवस्था॥15॥
</poem>
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