1,811 bytes added,
11:27, 4 सितम्बर 2011 ऐसी करतूतों पर मेरी इस जिह्वा से गाली ही छूट गई
देखो तो मरियल सा साँप भी न मर पाया लाठी भी टूट गई
दावे सब टाँय टाँय फिस्स हुए
खूब खिलाए तुमने माल पुए
लतियाया कर्तव्यों को जी भर
स्वारथ के श्रद्धा से पाँव छुए
ये कैसी जनसेवा जो भोली जनता की मिट्टी ही कूट गई
ऐसी करतूतों पर .......................................................................
बस ऊपर ही ऊपर उजले हैं
गहरे दिखते थे पर उथले हैं
इनसे क्या उम्मीदें बाँधे हो
सब के सब स्वारथ के पुतले हैं
कोई रैना आकर भर दुपहर दिवसों का उजियारा लूट गई
ऐसी करतूतों पर ..........................................................................
अर्थ नियोजन फोकट में जाते
अंधों का पीसा कुत्ते खाते
ऊपर से रूपया जो चलता है
नीचे तक दस पैसे आ पाते
नल के नीचे रक्खे हो ऐसी गगरी जो पेंदी से फूट गई
ऐसी करतूतों पर .........................................................................