कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर । <BR/>
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥ <BR/><BR/>
सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान । <BR/>
निरगुन सरगुन के परे, तहीं हमारा ध्यान ॥ 904 ॥ <BR/><BR/>
घन गरजै, दामिनि दमकै, बूँदैं बरसैं, झर लाग गए। <BR/>
हर तलाब में कमल खिले, तहाँ भानु परगट भये॥ 905 ॥ <BR/><BR/>
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। <BR/>
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥ 906 ॥ <BR/><BR/>