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08:30, 7 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= अनीता अग्रवाल
|संग्रह=
}}
<poem>
रिक्शे वाला
आता है
रिक्शे में बैठकर
धूप से पीछा छुड़ाती हूं
बैठते हुए भी
बैठने से कतराती हूं
सोचती हूं
रिक्शे वाले के बारे में
उसे धूप से बचाने का
एक अभ्यास सा बन गया है।
</poem>