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18:25, 30 अगस्त 2007 आज तो पुनो मचल पड़ी
अलकों में मुक्ता हल भरके
भाल बीच शशि बेंदी भर के
हँसी सिंगार सोलहों करके
नभ पर खड़ी खड़ी
फूलों ने की हँसी ठिठोली
किसे रिझाने चातकी बोली
वह न लाज से हिली न डोली
भू में गड़ी गड़ी
चंदन चर्चित अंग सुहावन
झिलमिल सुवार्ननचल मन भावन
चम्पक वर्ण, कपोल लुभावन
आँखें बड़ी बड़ी
आज तो पुनो मचल पड़ी