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विदा करना निकली जब माता

पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?


हमने बचपन साथ बिताये

ब्याह हुआ संग संग पति पाये

सीता को ही दुःख दिखलाये

क्यों नित नए विधाता ?


कोमल चित थे जेठ हमारे

बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे

छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे

कोई तो समझाता !
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