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धूप में अब छाँव मुमकिन, जेठ में बरसात मुमकिन / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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06:03, 16 सितम्बर 2011
माँए हैं ममता से गाफिल, बाप अपनी चाहतों से
कल जो मुमकिन ही
नही
नहीं
थी, आज है वो बात मुमकिन
सोच में रह जाए केवल, याद घर का साजो-सामाँ
Purshottam abbi "azer"
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