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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
काम है जिनका रस्ते-रस्ते बम रखना
उनके आगे पायल की छम-छम रखना

जो मैं बोलूँ आम तो वो बोले इमली
मुश्किल है उससे रिश्ता क़ायम रखना

दौलत के अंधों से उल्फ़त की बातें
दहके अंगारों पर क्या शबनम रखना

इक रूपये की तीन अठन्नी माँगेगी
इस दुनिया से लेना-देना कम रखना

सच्चाई की रखवाली को निकले हो
सीने पर गोली खाने का दम रखना

शासन ही बतलाए-क्यों आवश्यक है
पीतल की अँगूठी में नीलम रखना

देखो यार, मुझे घर जल्दी जाना है
जाम में मेरे आज ज़रा सी कम रखना

<poem>
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