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जीतने की अगरचे आस नहीं /वीरेन्द्र खरे अकेला
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13:16, 17 सितम्बर 2011
कोई भी मेरे आस पास नहीं
मन का
पंछी
राही भटकता फिरता
है
क़ैद पिंजरे में
ऐ ‘अकेला’ कहीं निकास
नहीं
नही
</poem>
Tanvir Qazee
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