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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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<Poem>
कैसे कर पाओगे प्यार?
किसी और से तुम
कभी ख़ुद से प्यार किया है?
कभी ख़ुद को छूआ है तुमने?
वीरानी-सी बसर करे जब कमरे में
क़रीब कोई भी न हो तुम्हारे सिवा
आईना के सामने खड़े हो कर
अपने आपको छूकर देखो
महसूस करो
कहो कि प्यार करता हूँ
कहो कि प्यार हूँ मैं
अगर कर न सके इतना भी
कैसे कर पाओगे प्यार?
किसी और से तुम
कभी ख़ुद से प्यार किया है?
कभी ख़ुद को छूआ है तुमने?
<Poem>
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