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12:37, 19 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ओम निश्चल
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<Poem>
थके हुए काँधे पर
भाल की तरह,
छुआ मुझे तुमने रूमाल की तरह.
फिर चंचल चैत की
हवाएँ बहकीं,
कुम्हलाए मन की
फुलबगिया महकी
उमड़ उठा अंतर शैवाल की तरह.
बीत गए दिन उन्मन
बतकहियों के
लौटे फिर पल
कोमल गलबहियों के
हो आया मन नदिया-ताल की तरह.
बहुत दिन हुए
तुमसे कुछ कहे हुए
सुख-दुख की संगत में
यों रहे हुए
बोले-बतियाए चौपाल की तरह.
<Poem>