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यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल
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17:30, 19 सितम्बर 2011
बसाते हम क्षितिज की छॉंव में
कोई बसेरा-सा
खिली सरसों
कहीं
सरसों खिली
होती
कहीं फूली मटर होती
यहीं कोई भँवर होता
Om nishchal
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