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दीवाली पर पिया / ओम निश्चल

17 bytes added, 06:23, 21 सितम्बर 2011
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|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्दि शब्द सक्रिय हैं
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<Poem>
दीवाली पर पिया,
चौमुख दरवाजे दरवाज़े पर बालूँगी मैं दिया।दिया ।पिया।पिया ।
उभरेंगे ऑंखों आँखों में सपनों के इंद्रधनुष,
होठों पर सोनजुही सुबह मुस्कराएगी,
माथे पर खिंच जाऍंगी जाएँगी भोली सलवटेंअगवारे पिछवारे फसल फ़सल महमहाएगी
हेर -हेर फूलों की पॉंखुरी पाँखुरी जुटाऊँगी,ऑंगनआँगन-चौबारे छितराऊँगी मैं पिया।पिया ।पिया।पिया ।
माखन मिसरी बातें शोख मावसी रातें,
अल्हड़ सौगंधों की नेह-सनी सौगातें,
फिर होंगे हरे -भरे दिन रंगत नई -नईताजा ताज़ा होंगी फिर -फिर सावनी मुलाकातेंमुलाक़ातें
पास बैठ कर मन की गॉंठें गाँठें सुलझाऊँगी,सिरहाने गीत बन रिझाऊँगी मैं जिया।जिया ।पिया। पिया ।
आना जी, मावस को सॉंझ साँझ ढले आना
दूर यों अकेले में दिल मत बहलाना,
साथ दीप बालेंगे सुनेंगे हवाओं में......
मन से मन जोड़ूँगी, हर संयम तोडूँगी
सुख -दुख से जुड़ कर सहलाऊँगी मैं हिया।हिया ।पिया। पिया ।
<Poem>
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